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5 वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन (IWIS) का तीसरा दिन: "अर्थ गंगा" : नदी संरक्षण समन्वित विकास
आज का विषय: "नदी संरक्षण समन्वित ऊर्जा एवं पर्यटन"
कानपुर
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, जल शक्ति मंत्रालय एवं सीगंगा (आईआईटी कानपुर) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित 5 वें इंडिया वाटर इम्पैक्ट शिखर सम्मेलन (IWIS) में तीसरे दिन नदी संरक्षण समन्वित ऊर्जा और पर्यटन विषय पर विचार मंथन किया गया। प्रोफेसर विनोद तारे (संस्थापक और प्रमुख, cGanga) ने प्रथम सत्र के विशेषज्ञों के समक्ष चर्चा का मुद्दा पेश किया। प्रथम सत्र में ऊर्जा उत्पादन और पर्यटन के स्थानीय अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान एवं इसमे नदियों के महत्व पर गहन चर्चा की। डॉ राजेंद्र डॉ भट्टाराय (cGnaga, आईआईटी कानपुर) ने बड़े बाँधों के स्थान पर छोटे जलाशयों और छोटे जलविद्युत संयंत्रों के पक्ष में तर्क दिया। श्री एस के राठो (एडीजी (वन), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय) ने ने कार्बन फुट्प्रिन्ट एवं फॉरेस्ट eco-टुरिज़म के बारे मे सरकार के विचार एवं कार्यों के बारे मे चर्चा की।
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महाधिवेशन सत्र में श्री आर आर मिश्रा, (डीजी, एन एम सी जी) ने कहा कि गंगा के "निर्मलता" को पुनः प्राप्त करने की दिशा में लगातार प्रगति हुई है और हमें अब "अविरलता" पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने एक गंगा गैलरी बनाये जाने के बारे में भी बताया। श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड, ने बताया कि गंगा जी मे समाने वाली सहस्त्र धाराएं गंगा बन जाती हैं उसी प्रकार हमारे देश की संस्कृति भी सहस्त्र संस्कृतियों से मिलकर बनी है, यह बात बताती है की गंगा हमारी संस्कृति के मूल मे है। उत्तराखंड मे गंगा नदी मे मिलने वाले लगभग सभी गंदे नालों का प्रवाह बंद कर दिया है, तथा अब प्रयास है की सभी सहायक नदियों के संरक्षण का कार्य तीव्रता से किया जा सके। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में नदियों के पास बड़ी झीलें भी बनाई जा रही हैं, जहाँ से समय-समय पर नदियों में पानी डाला जा सकता है। केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री, श्री प्रहलाद सिंह तोमर ने नदियों की भगवान की अद्भुत रचना के रूप में प्रशंसा करते हुए गंगा के साथ सभी नदियों के संरक्षण और स्थायी समाधान के लिए हमारी जीवन शैली को बदलने पर जोर दिया। डॉ अजय माथुर (महानिदेशक, TERI) ने पनबिजली संयंत्रों की स्थापना के दौरान स्थानीय आवश्यकताओं और उपयुक्तताओं के साथ-साथ पर्यटन विकास की संभावनाओं को ध्यान में रखने हेतु तर्क दिए। कुल मिलाकर, राजनीतिक नेतृत्व, कार्यकारी, नीति निर्माताओं और विशेषज्ञों के बीच एक बहुत ही उपयोगी संवाद ने कई नए विचारों और साधनों से ऊर्जा और पर्यटन के साथ नदी संरक्षण के लाभप्रद पहलुओं को जोड़ा।
तृतीय दिवस के प्रारम्भिक सत्रों के बाद शेष दिन मे, शिखर सम्मेलन के प्रतिभागियों ने जल क्षेत्र मे वित्त प्रबंधन और पर्यावरण प्रौद्योगिकी मे नवचारों की प्रस्तुतियों पर विचार-विमर्श जारी रखा। यह सम्मेलन 15 दिसम्बर तक जारी रहेगा जिनमे नदी संरक्षण समन्वित कृषि एवं नौपरिवहन तथा बाढ़ प्रबंधन पर चर्चा की जावेगी। इन चर्चाओं में उत्तर प्रदेश एवं बिहार राज्य के उच्च स्तरीय शासन अधिकारी एवं जन प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे।